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बिहार बोर्ड 10th घनानंद अति सूधो सेनह को मारग हैं। संपूर्ण व्याख्या प्रश्न उत्तर सहित BSEB bihar board 10th hindi

बिहार बोर्ड 10th घनानंद अति सूधो सेनह को मारग हैं। संपूर्ण व्याख्या प्रश्न उत्तर सहित BSEB bihar board 10th hindi 

आज हमलोग बिहार बोर्ड गोधूलि भाग 2 से लिया गया हैं।घनानंद चैप्टर का प्रश्न उत्तर व्याख्या सहित करेंगे जो की 2024 के परीक्षा के लिए अति महत्वपूर्ण।

घनानंद का जीवन परिचय:- 


घनानंद का पूरा परिचय दिया गया देखें।

उनके पहले पद को समझते हैं।
प्रस्तुत पाठ हमारे हिंदी पाठ्यपुस्तक गोधूलि भाग 2 के काव्य पद खंड से लिया गया है।पद में प्रेम मार्ग को सरल बताते हुए कहा है।
 कि इनमें कोई खर्च नहीं है सब कुछ आप प्राप्त कर सकते हैं इस मार्ग पर चलकर

भावार्थ: - प्रेम का मार्ग अत्यंत सरल मार्ग है ।
इस मार्ग पर चलकर आप कहीं भी जा सकते हैं।
इस मार्ग में सच्चाई की अभिमान ठिठक  जाता है।
 जो कि कपटी लोगों अपना स्थान नहीं पा सकते घनानंद का कहना है।
कि हे प्यारे सज्जन,  इस मार्ग को अपनाकर दूसरों को मार्ग में नहीं  हैं।
इस मार्ग का अनुसरण करने का कोई खर्च नहीं है लेकिन प्राप्ति सब कुछ हो जाती  हैं।


दूसरे पद में
इस पद में 
प्रस्तुत पाठ हमारे हिंदी पाठ्यपुस्तक गोधूलि भाग 2 के काव्य पद खंड से लिया गया है।पद में प्रेम मार्ग को सरल बताते हुए कहा है।

भावार्थ :- हे मेध।
 परजन नाम तुम्हारा सही है ।
क्योंकि परोपकार के लिए ही देह धारण कर घूमते हो समुंद्र जल को भी तुम अमृत जैसा बनाकर अपने रस्युक्त घनानंद का कहना है ।
तुम जीवनदायक हों कुछ मेरे ह्रदय की पीड़ा को स्पर्श करें हे विश्वासी किसी भी समय मेरी पीरारूपी आसुओं को देखकर सज्जन लोगों को आंगन में बरसात जाओ।


1 कवि प्रेममार्ग को "अति सूधो 'क्यों कहता है? इस मार्ग की विशेषता क्या हैं।
उत्तर:- 
प्रस्तुत पाठ हमारे हिंदी पाठ्यपुस्तक गोधूलि भाग 2 के काव्य पद खंड से लिया गया है।पद में प्रेम मार्ग को सरल बताते हुए कहा है।
कवि प्रेममार्ग को अति सूधो मतलब अत्यंत सरल कहां है क्योंकि यह मार्ग चलकर मनुष्य को बिना कोई खर्च के सब कुछ पा सकता है क्योंकि प्रेम का जो मार्ग हैं ।
ईश्वर के प्रति समर्पण का भाव है ।
यहां पर चतुराई का कोई मार्ग नहीं रखा गया इसलिए सभी  को प्रेममार्ग  पर चलना चाहिए।

 “मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं” से कवि का क्या अभिप्राय है ?

उत्तर :-  प्रस्तुत पाठ हमारे हिंदी पाठ्यपुस्तक गोधूलि भाग 2 से लिया गया पाठ का नाम अति सूधो 

सनेह को मारग हैं। से लिया गया है 

 लेखक का नाम धनानंद कवि कहते हैं कि प्रेमी में देने की भावना होती है लेने की नहीं। प्रेम में प्रेमी अपने इष्ट को सर्वस्व न्योछावर करके अपने को धन्य मानते हैं। इसमें संपूर्ण समर्पण की भावना उजागर किया गया है।मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं”

यहां मन 40 किलो का है और छटाक कनमा जो उसे समय मन माप का सबसे बड़ा छटका सबसे छोटा परिणाम माना जाता था।

 


द्वितीय छंद किसे संबोधित है, और क्यों ?

उत्तर :-  प्रस्तुत पाठ हमारे हिंदी पाठ्यपुस्तक गोधूलि भाग 2 से लिया गया पाठ का नाम अति सूधो 

सनेह को मारग हैं।

 से लिया गया है 

 लेखक का नाम घनानंद है। द्वितीय छंद में मेघ का संबोधन किया गया है।

 इसमें मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह-वेदना की अभिव्यक्ति है।

 मेघ का वर्णन इसलिए किया गया है कि मेघ विरह-वेदना में अश्रुधारा प्रवाहित करने का जीवंत उदाहरण ।


परहित के लिए ही देह कौन धारण करता है ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर :- प्रस्तुत पाठ हमारे हिंदी पाठ्यपुस्तक गोधूलि भाग 2 से लिया गया पाठ का नाम अति सूधो 

सनेह को मारग हैं।

 से लिया गया है 

 परहित के लिए ही देह, बादल धारण करता है। 

बादल जल की वर्षा करके सभी प्राणियों को जीवन देता है, प्राणियों में सुख-चैन स्थापित करता है। 

उसके विरह के आँसू, अमृत की वर्षा कर जीवनदाता हो जाता है।

 इसलिए मेध का नाम "परजन्य "भी है।

 

5 कवि कहाँ अपने आँसुओं को पहुंचाना चाहता है, और क्यों ?

उत्तर :-प्रस्तुत पाठ हमारे हिंदी पाठ्यपुस्तक गोधूलि भाग 2 से लिया गया पाठ का नाम अति सूधो 

सनेह को मारग हैं।

 से लिया गया है 

 कवि अपनी प्रेयषी सजान के लिए विरह-वेदना को प्रकट करते हुऐ बादल से अपने प्रेमाश्रुओं को पहुँचाने के लिए कहता है।

 वह अपने आँसुओं को सुजान के आँगन में पहुँचाना चाहता है, क्योंकि वह उसकी याद में व्यथित है।

और अपनी व्यथा के आँसुओं से प्रेयषी को भिंगो देना चाहता है। इसलिए कवि की आकांक्षा है ।

कि मेरी पीड़ा सज्जन के आंगन तक पहुंचकर परोपकारी मेध मेरी पीड़ा को कम करने में मदद देगा।


व्याख्या करे।

6   1  यहाँ एक तैं दूसरौ औंक नहीं ।।

उत्तर :- प्रस्तुत पाठ हमारे  हिंदी पाठ्यपुस्तक गोधूली  भाग 2 से लिया गया हैं । इस पाठ के लेखक का नाम घनानंद  है। पाठ का नाम 

अति सूधी सनेह को मारग है” पाठ से उद्धत है। इसके माध्यम से कवि प्रेम के मार्ग  को सुगम सरल पवित्र कहते हैं।
प्रस्तुत पंक्ति में कवि घनानंद अपनी प्रेमिका सुजान को संबोधित करते हैं कि हे सुजान, सुनो ! यहाँ अर्थात् मेरे प्रेम में तुम्हारे सिवा कोई दूसरा चिह्न नहीं है। मेरे हृदय में मात्र तुम्हारा ही चित्र अंकित है। अतः प्रेममार्ग के समान कोई दूसरा मार्ग नहीं है प्रेममार्ग ही अद्वितीय मार्ग हैं।


2  कछू मेरियौ पीर हि परसौ’ की व्याख्या करें।

उत्तर :- प्रस्तुत पाठ हमारे  हिंदी पाठ्यपुस्तक गोधूली  भाग 2 के काव्य पद खंड के , मो अँसवानिहि लै बरसौ  

पद से लिया गया है। जिसके रचयिता प्रेममार्गी कवि घनानंद है कवि ने इस पद में मेध को परोपकारी कहते हुए मेध  से कवि के आंसुओ को परोपकार हेतु लेकर सज्जन के आंगन में बरसाने का आग्रह करता हैं।

 प्रेमाश्रुओं को लेकर सुजान के आँगन में प्रेम की वर्षा कर दो।

इस पद में कवि की इच्छा है कि जीवनदायक मेध  हमारे हृदय के पीड़ा को अपने स्पर्श से सुखकारी बना देगा 

क्योंकि मेघ का कार्य ही दूसरों को सुख को पहुंचना।


आज हमलोग बिहार बोर्ड गोधूलि भाग 2 से लिया गया हैं।घनानंद चैप्टर का प्रश्न उत्तर व्याख्या सहित करेंगे जो की 2024 के परीक्षा के लिए अति महत्वपूर्ण।
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Vikram Kumar