1 प्रेम-अयनि श्री राधिका
उत्तर:- प्रस्तुत पाठ हमारे हिंदी पाठ्यपुस्तक गोधूलि भाग 2 के काव्य खण्ड के" प्रेम-अयनि श्री राधिका"
पाठ से लिया गया है। इस पाठ के रचनाकार रसखान हैं।
श्री राधिका प्रेम के खजान हैं तो श्रीकृष्ण के प्रेम रंग में रंगा प्रेमी है दोनों एक ही वाटिका के दो नायक माली- मालिन है मोहन के रूप सौंदर्य को देखकर रसखान कि ये आंखें अपने वश में नहीं है ।
अर्थात वह प्रेम स्वरूप
के प्रति ये आंख युगल रूप दिख रही है।
उसी प्रकार जैसे वाण को खींचते धनुष से छूटकर चला जाता है।
मेरे मन रत्न देखकर चितचोर कहलाने वाले नंद के नंदन चुरा लिए जब मैं बिना मन वाला हो गया तो क्या कर सकता हूं।
मैं तो सिर्फ कृष्ण और राधिका के प्रेम में फंसा हूं ।
हे
प्रिय नंदकिशोर जिस दिन से आपके इस स्वरूप का दर्शन हुआ है। आंखों को क्या हुआ है ।
उस दिन से मेरा मन पवित्र हो गया है।
हे चितचोर मैं आपने पलकों को आपके छवि दर्शन से अलग न कर सकूँ ऐसी मेरी इच्छा है।
:- पद परिचय इस दोहे में रसखान भगवान श्री कृष्ण और राधिका जी के युगल स्वरूप को प्रेम का खजाना कहां है अर्थात राधा कृष्ण के युग स्वरूप की जो भक्ति करता है उसे भगवान श्री कृष्ण अपने रंग में रंगकर प्रेममय कर देते हैं।
2 करील के कुंजन ऊपर वारौं
उत्तर:- प्रस्तुत पाठ हमारे हिंदी पाठ्यपुस्तक गोधूलि भाग 2 के काव्य खण्ड के" प्रेम-अयनि श्री राधिका"
पाठ से लिया गया है। इस पाठ के रचनाकार रसखान हैं।
जिन्होंने छोटी लाठी , कंबल पर तीन लोक का राज त्याग दिये आठों सिद्धि और नवनिधियों के सुख को भी नंद के गाय चराने के पीछे भूल गए उस श्रीकृष्ण को देखने के लिए आंखें कब से बहुत दिनों से ब्रज के वन , उपवनों और तालाब को निहार रहा है।
उनके दर्शन हेतु इंद्र के करोड़ों स्वर्ग की प्रेमवाटिका स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण के ऊपर बलिदान कर दूँ। ऐसी मेरी अभिलाषा है।
:- पद परिचय सवैया में प्रस्तुत पद में रसखान श्रीकृष्ण की भक्ति में अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हैं।
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Vikram Kumar