उत्तर:- प्रस्तुत पाठ हमारे हिंदी पाठ्यपुस्तक गोधूलि भाग 1 से उद्धृत है पाठ का नाम कहानी का प्लॉट और लेखक का नाम शिवपूजन सहाय है।
लेखक अपनी सहृदयता का परिचय देते हुए ऐसा कहता है की कहानी लिखने की योग्य प्रतिभा मुझ में नहीं जो बड़ा कहानीकार या रचनाकार होता है वह अपनी रचनाओं का स्वयं मूल्यांकन नहीं करता है बल्कि उसकी रचनाओं का मूल्यांकन आलोचक करते हैं रचनाकार सामाजिक मूल्य और उनके मूल्य दोनों को मिलाकर एक नया आकार देता है जो जीवन के आसपास परी घटनाओं पर आधारित होता है वह समाज में ही घटनाओं की समीक्षा करता है उसकी समस्याओं को अपनी रचनाओं में जगह देता है और आने वाली पीढ़ियों के लिए संदेश देता है समाज की जो विषमता हैं ।
उसे उजागर करता है और फिर दोबारा ऐसी घटना ना हो उसके लिए रचनाकार पाठक का ध्यान आकर्षित करना चाहता है।
इसलिए रचनाकार कहता है की कहानी लिखने की योग्य प्रतिभा मुझमें नहीं हैं।
जबकि वह कहानी श्रेष्ठ कहानियों में से एक है कही जा सकती है कि समाज में भी व्याप्त बुराई के प्रति सचेत करने वाली कहानी हैं।
2 लेखक ने भगजोगनी नाम ही क्यों रखा?
उत्तर:- प्रस्तुत पाठ हमारे हिंदी पाठ्यपुस्तक गोधूलि भाग 1 से उद्धृत है पाठ का नाम कहानी का प्लॉट और लेखक का नाम शिवपूजन सहाय है।
भगजोगनी एक प्रकार का कीट -पतंग है
जो अपनी प्रकाश उत्पन्न करता है जब कभी भी अंधेरा होता है तो वह आसपास के परिवेश को अपनी क्षमता के अनुसार प्रकाशित कर देता है भगजोगनी अभागिन तो थी लेकिन सुंदरता में वह अंधेरे घर का दीपक थी आजकल लेखक ने वैसी सुंदर लड़की नहीं देखी थी इसी कारण लेखक ने मुंशी जी की लड़की का नाम भगजोगनी रख दिया।
3 मुंशी जी के बड़े भाई क्या थे?
उत्तर:-प्रस्तुत पाठ हमारे हिंदी पाठ्यपुस्तक गोधूलि भाग 1 से उद्धृत है पाठ का नाम कहानी का प्लॉट और लेखक का नाम शिवपूजन सहाय है।
मुंशी जी के बड़े भाई पुलिस- दरोगा थे दरोगा होने के नाते उनकी कमाई बड़ी अच्छी थी। लेकिन दरोगा जी बड़े खर्चीली और शौकीन मिजाजी थे ।
अपने इस खर्च और शौक के कारण उन्होंने अपने जीते जी सब कुछ खर्च कर डाला और मरने के बाद अपने छोटे भाई मुंशी जी को गरीबी की हालत में छोड़ गए।
4 दरोगाजी की तरक्की रुकने की क्या वजह थी?
उत्तर:-प्रस्तुत पाठ हमारे हिंदी पाठ्यपुस्तक गोधूलि भाग 1 से उद्धृत है पाठ का नाम कहानी का प्लॉट और लेखक का नाम शिवपूजन सहाय है।
दरोगा जी की तरक्की रुकने की मूल वजह उनका घोड़ी प्रेम था
दरोगा जी के पास एक घोड़ी थी।
घोड़ी ऐसी की कान काटती थी तुर्की घोड़ों का यू
कह लें की बारूद की पुड़िया थी।
इतनी अच्छी घोड़ी पर कुछ बड़े अंग्रेज अफसरों की दांत गिर गई थी।
लेकिन दरोगाजी तो शौकीन मिजाज ठहरे।
उन्होंने सबको नेबुआ नोन चटा दिया।
इस कारण अफसरों ने उनकी तरक्की होने नहीं दी।
5 मुंशी जी अपने बड़े भाई से कैसे उऋण हुए?
उत्तर:-प्रस्तुत पाठ हमारे हिंदी पाठ्यपुस्तक गोधूलि भाग 1 से उद्धृत है पाठ का नाम कहानी का प्लॉट और लेखक का नाम शिवपूजन सहाय है।
दरोगा जी ने तो अपने जीते जी ही सबकुछ लुटा दिया था
अपनी शौकीन मिजाजी के कारण लेकिन अंत में एक घोड़ी छोड़ गए जो बड़े -बड़े अंग्रेज अफसरों की आंखों में थी ।
उस घोड़ी को एक गोरे ऑफिसर के हाथों बेच कर मुंशीजी ने दरोगा जी का श्राद्ध बड़े धूमधाम से करा दिया ।
यदि वह घोड़ी ना होती तो मुंशी जी को कर्ज लेकर श्राद्ध करना पड़ता इस तरह घोड़ी बेचकर मुंशी जी अपने भाई उऋण हुए।
6 थानेदार की कमाई और फूस का तापना दोनों बराबर है लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर:- प्रस्तुत पाठ हमारे हिंदी पाठ्यपुस्तक गोधूलि भाग 1 से उद्धृत है पाठ का नाम कहानी का प्लॉट और लेखक का नाम शिवपूजन सहाय है।
लेखक ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि थानेदार ने अपने जीवन में जो भी दो-चार पैसा कमाया वह ईमानदारी ,मेहनत का पैसा ना था
बल्कि वह घपले से कमाया गया पैसा था
जब व्यक्ति ईमानदारी से कुछ अर्जन करता है तो वह ईमानदारी से ही खर्च करता है
कहते हैं कि मेहनत इंसान को पैसे की कीमत सिखलाती है
यहां थानेदार की यही मेहनत की कमाई होती तो सोच -समझकर खर्च की जाती लेकिन लेखक ने ऐसा कहा कि थानेदार की कमाई और फूस का तपना दोनों बराबर है।
7