जन्म-स्थान ग्राम वरसाई रामगढ़ ,महाराष्ट्र
पिता पंडित बालकृष्ण भट्ट
शिक्षा स्वाध्याय परंपरागत रूप से संस्कृत और
वृत्ति पुरोहित कर्मकांड व कृषि
कृति एकमात्र माझा प्रवास मेरा प्रवास मराठी में
भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम 1857 के गदर का आंखों देखा विस्तृत विवरण
प्रामाणिक रूप से प्रस्तुत करने वाले
भारतीय पंडित विष्णुभट गोडसे वरसईकर
कोई पेशेवर लेखक नहीं थे,
आजीविका से कर्मकांडी और पुरोहित थोड़ी बहुत खेती भी थी किंतु वह पर्याप्त नहीं परिवार को ऋण मुक्त कराने तथा उसके समुचित निर्वहन के लिए कुछ धन प्राप्त करने के प्रयोजन से उत्तर भारत की ओर आए किंतु 1857 ई की क्रांति के गदर में फंस गई थी। उत्तर भारत की कई तीर्थों की यात्रा और लगभग ढाई साल बाद अपने गांव वरसाई वापस लौटे अपने यजमान महाराष्ट्र के प्रसिद्ध विद्वान चिंतामणि विनायक वैद्य आग्रह और अनुरोध पर उन्होंने इस वृतांत को लिखने का उत्कृष्ट कार्य किया जो कि "माझा प्रवास" है । हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार अमृतलाल नागर ने "माझा प्रवास" का प्रमाणिक रूपांतरण बीसवीं शताब्दी के चौथे दशक में की आंखों देखा गदर इसे नाम दिया!!!
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