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लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी

लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी यह पाठ :-10 के राजनीति शास्त्र  से लिया गया
लोकतंत्र का अर्थ:-लोगों का शासन 
संस्कृत में श्लोक जनता तथा तंत्र शासन इस शब्द का प्रयोग सामाजिक संदर्भ में किया जाता है लोकतंत्र इन सिद्धांतों के मिश्रण के रूप में बनता है

लोकतंत्र की परिभाषा:- जनता द्वारा जनता के लिए जनता का शासन
यह अंग्रेजी भाषा डेमोक्रेसी यह  ग्रीक शब्दों से बना है जिसका अर्थ होता है लोगों का शासन हैं।

सत्ता:- अगर कोई किसी से अपनी मर्जी के आधार पर कुछ ऐसे काम करवा सकता है जो वह अन्यथा नहीं करता हूं इसे एक व्यक्ति की दूसरे पर सत्ता मतलब (पावर )
की संज्ञा दी जाएगी लोकतंत्र में सत्ता साझेदारी लाभ व हानि भी है!

आज हम सभी इस पथ  में सामाजिक विभाजन और भेदभाव वाली तीन सामाजिक असमानता ओं पर गौर करेंगे जाति ,धर्म, लिंग ,
आधारित सामाजिक विषमता राजनीति में किस प्रकार दिखाई देती है इस बात में पड़ेंगे और समझे

(1) लोकतंत्र में  द्वंद्ववाद:- इसमें लोगों के हित तथा उनकी इच्छाओं को स्वरूप ड़ी महत्व देना चाहिए इसके कारण द्वंद बाद का जन्म होता है
(1) पाली घटना 1961 में मुंबई में मराठी की संख्या 34% थी और 2001 में यह 57 के ऊपर हो गई

(2) मुंबई में सबसे अधिक कल कारखानों में जिसमें यहां के लोगों की आय अधिक होती है उत्तर प्रदेश तथा बिहार पिछड़े राज्य जहां पर बैंक के द्वारा  ऋण न मिलना से इस स्थिति हम देख सकते हैं वहीं मुंबई को भारत की वित्तीय राजधानी भी कहा जाता है
1 मुंबई में बिहारियों को मारा पीटा गया
2 रेलवे भर्ती बोर्ड की परीक्षा में बिहारी छात्रों के साथ मारपीट आदि
जाति धर्म या संप्रदाय को दिशा बनाया जाता है और उसे द्वंदात्मक पहलुओं का सीधा प्रभाव लोकतंत्र के सिद्धांत और व्यवहारों को दिखाई पड़ता हैं
3 मेक्सिको के ओलंपिक समारोह में विरोध का रूप नस्लआधारित था
4 वेलिज्यम में सामाजिक विभाजन का आधार और जाति नहीं भाषा विभाजन हैं।
5 भारत में भी अग्रि जाति व पिछड़ी जातियों में अक्सर टकराव देखे जा सकते हैं दलितों व पिछड़ों की या अंतर्द्वंद का उदाहरण हैं।


लोकतांत्रिक व्यवस्था में सामाजिक विभाजन के स्वरूप

इस इस घटनाओं को देखते हैं और भेदभाव के अलग-अलग तरीकों को देख रहे है
1 अमेरिका में नस्लभेद
2 श्रीलंका में क्षेत्रीय और समाज दोनों स्तर पर और भारत में भाषा क्षेत्र संस्कृति धर्म जाति लिंग आदि
3 अमेरिकी धावक टॉमी स्मिथ और जॉन कॉलेज नामक व्यक्ति इसी समारोह में अमेरिका अजित पर अत्याचार और नस आधारित जो कि ओलंपिक के द्वारा हुए था

सामाजिक भेदभाव व  विविधता की उत्पत्ति

यहां जाति व वंश कोई भी ना कर सकता है यह जन्म पर निर्भर है दलित का बच्चा दलित यहां स्त्री- पुरुष काला -गोरा लंबा- नाटा आदि जन्म का परिणाम है सामाजिक विभाजन जन्म आधारित है।
उदाहरण:- या कोई व्यक्ति धर्म परिवर्तन करता है तो वह दूसरे समुदाय का सदस्य बनता है अतः समुदायों की हित साधन व एक दूसरे के विपरीत भी हो सकते हैं

सामाजिक भिन्नता और सामाजिक विभाजन में अंतर

मुंबई में जो हिंसा हुआ उसमें धर्म लिंग जाति व सभी एक ही क्षेत्र उत्तर भारतीय थे इस कारण सामाजिक भिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं ले पाता है।

1 .इसका उदाहरण आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्र हिंसा का शिकार हुए
2. यहां धर्म के आधार पर एक हो सकता है लेकिन क्षेत्र जाति रंग लिंग के आधार पर विचार विपरीत होते
3 सवर्ण तथा दलित गरीब वंचित बेधर आदि अमेरिका में स्वेत- अश्वेत  सामाजिक विभाजन का रूप है,
4 विश्वा स्तर पर या विभाजन स्पष्ट दिखाई पड़ता है 
5  नीदरलैंड में केथोलिक और प्रोटेस्टेंट दोनों में अमीर गरीब हैं कोई देश छोटा है या बड़ा सामाजिक विभाजन स्पष्ट दिखाई देता है
6 काका कालेएक औऱ मंडल आयोग द्वारा आरक्षण की व्यवस्था लागू हो पाई इस में हिंसक तनाव भी हुआ इसे राजनीति पर सामाजिक लेबल लगना शुरू हो जाता है
7 70 के दशक में समावेश संपूर्ण भारत के सामाजिक और कौन देखता है कवि नामदेव आपनी कविता में लिख।
8 स्वर्ण और मध्यम पिछड़ी जातियों के संघर्ष
9 राजनीति होड़ में युगोइस्लाविया कई टुकड़ों में बट गया कई पार्टी अपने समुदाय और हित में राजनीति का आधार तैयार करते हैं।

सामाजिक विभाजन के तीन निर्धारक तत्व
1 जब तक बंगाल बंगाली या तमिलनाडु तमिलों का महाराष्ट्र  महाराष्ट्रीय का आसाम असामियों का गुजरात गुजरातियों की भावना मुक्ता का दमन नहीं होगा तब तक भारत की अखंडता को खतरा है सर्वप्रथम हम भारतीय हैं
2 आप ने बिहार में अस्सी नब्बे के दशक में राजनीति दृष्टि और युगोइस्लाविया में जातीय समूहों के टुकड़े में बटना।
3 भारत में पिछड़े दलित प्रति न्याय की मांग की सरकार शुरू से खारिज करती रही है श्रीलंका में एकता के तमिलों की मांग अक्सर विभाजन को दिखाती है।


सामाजिक विभाजन में जाति धर्म और लिंग विभेद के स्वरूप

यह सप्ताह में जातिगत राजनीति दलित पिछड़ी जाति राजनीतिक लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है 

असमान्यता:- भारत में छुआछूत वंशानुगत तीस्ता आदि यहां पे सा सामुदायिक व्यवस्था जाति का समुदाय भी मिलती जुलती पैसा है अगर कोई भी समुदाय किसी दूसरी जाति से विवाह करता है तो उसे समुदाय से बाहर निकाल दिया जाता है

वर्ण:- वरुण एक व्यवस्था है इसमें ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र को कहा जाता है यह धर्म पर आधारित था इसके बाद या जाति का रूप ले लेता है धीरे-धीरे दलित जातियों में जागृति लाई गई हमारे संविधान में तृतीय भाग में जाति भेदभाव का निषेध किया गया है

1 संविधान में प्रत्येक नागरिक को को स्वतंत्रता दी गई है
2 छुआ-छूत की भावना को अपराधी घोषित किया गया है
3 औसत आर्थिक हैसियत का संबंध वर्ण व्यवस्था से गहरा है

राजनीति में जाति:-

जाति हमारे जीवन का एक पहलू जरूर है परंतु यही एकमात्र या सबसे महत्वपूर्ण पहलू नहीं है 

1 निर्वाचन के वक्त पार्टी अभ्यार्थी तय करते समय जातीय समीकरण का ध्यान जरूर रखती है
2 दल विशेष की पहचान भी जातिगत भावना के आधार पर ही होती है

चुनाव में जातीयता में ह्रास की प्रकृति:-

राजनीति में जातिगत भावना पर जोर दिया जाता है
1 निर्वाचन का गठन जाति के आधार पर निर्णायक भूमिका निभाती है
2 कोई पार्टी जाति विशेष को किसी एक पार्टी का वोट बैंक खाते हैं उस जाति के ज्यादातर लोग पार्टी को वोट देते है
3 निर्वाचन क्षेत्र में किसी जाति के मतदाता के सामने उसकी जाति का एक भी उम्मीदवार सरकार या राजनेताओं की लोकप्रियता उनके जाती मुखौटा के कारण नहीं बढ़ती है बल्कि उसके कामकाज के कारण ही बढ़ती है




जाति के अंदर राजनीतिक अर्थात जाति को राजनीति भी प्रभावित करते हैं

जाति राजनीति को प्रभावित करती है आज के राजनीति का प्रमुख उद्देश्य दलित व वंचित तथा पिछड़ी जातियों को जमीन संसाधन का अवसर उपलब्ध कराना होगा सप्ताह में उनकी अधिक से अधिक भागीदारी की बात किए जाए।


धर्म संप्रदायिक व राजनीति:-
भारत में सभी धर्मों के अनुयाई हैं यहां आस्था पर आधारित है हिंदू धर्म में शैव परंपरा वैष्णव कबीरपंथी जैन तथा बौद्ध धर्मावलंबी हैं
1 गांधी जी ने एक बार कहा कि धर्म को राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता है
2 भारत में सांप्रदायिक दंगों का सबसे बड़ा शिकार अल्पसंख्यक समुदाय है
3 महिलाओं में असुरक्षा शोषण तथा अत्याचार के अधिकार सारी बातें धर्म और राजनीति से जुड़ी होती हैं




 संप्रदायिकता:-
1 धर्म को राष्ट्र का आधार मान लिया जाता है
2 राजनीति में धर्म की अभिव्यक्ति है
3 धर्म विशेष राजनीति पत्र पोषक कहलाता है
4 राजनीति में धर्म का इस्तेमाल करना संप्रदायिकता कहलाता है

परिभाषा:- जब धर्म समुदाय संप्रदायिकता राजनीतिक जन्म लेने लगता है और इस अवधारणा कि हम संप्रदायिकता कहते हैं


राजनीति में संप्रदायिकता के स्वरूप:-
संप्रदायिकता धार्मिक पूर्वाग्रह परंपरागत धार्मिक अवधारणा धर्म को दूसरे से श्रेष्ठ माना की जाती है
1 जो लोग बहुसंख्यक समुदाय के होते हैं
2 संप्रदायिक राजनीतिक गोलबंदी किसी खास धर्म अनुयायियों से किसी पार्टी पत्र मतदान करता है
3 आजादी के बाद कई जगहों पर बड़े पैमाने पर संप्रदायिक हिंसा हुई है



धर्म निरपेक्ष शासन की अवधारणा:-
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश बना हमारे संविधान में धर्मनिरपेक्ष समाज की स्थापना हुई
1 हमारे यहां कोई धर्म राजकीय धर्म न है
2 यहां सब लोग स्वतंत्र हैं
3 धर्म के आधार पर भेदभाव न हैं


लैंगिक मसले और राजनीति:-
लैंगिक असमानता सामाजिक असमानता का एक महत्वपूर्ण रूप है कि स्त्री पुरुष जैविक बनावट रूढ़िवादी विचार लैंगिक भेदभाव आदि हमारे यहां 1991 और 2001 में जनगणना में देखा गया कि महिलाएं 85% कृषि कार्य से जुड़ी हुई हैं
1 सर्वप्रथम इंग्लैंड में 1918 में महिलाओं को वोट देने का अधिकार प्राप्त हुआ
2 महिलाओं की साक्षरता दर 54% है
3 महिलाओं की ऊंची पदों पर पहुंचने में वाली महिलाएं की संख्या बहुत कम है
4 सर्वेक्षण के अनुसार महिला सबसे ज्यादा घंटे तक काम करती है और लैंगिक पूर्वाग्रह की भी शिकार रहती है

महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधि:-
भारत में लोकसभा में महिला प्रतिनिधित्व की संख्या 59 होगा तब भी इसका प्रतिशत मात्र 11% से नीचे है
1 ग्रेट ब्रिटेन में 19.3
2 संयुक्त राज्य अमेरिका 16.3
3 इटली 16.1
4 आयरलैंड 16.2
5 फ्रांस में 13.4
पश्चिमी देशों में 70% है पिछले लोकसभा में 40% महिलाओं की पारिवारिक पृष्ठभूमि अपराध से जुड़ी हुई थी लेकिन 15 वीं लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने अपराधियों को नकारते हुए 90% महिलाओं को संसद में भेजा है महिलाओं का प्रतिनिधित्व लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है
New education point  vikram pandey